जैन संत की आहारचर्या अत्यंत कठोर होती है,जैन साधु की भोजन के प्रति आसक्ति नही होती है,
जैन संत 24 घंटे में एक ही बार खड़े होकर आहार और जल ग्रहण करते हैं,खंडवा।। जैन साधु एक ही स्थान पर खड़े होकर 24 घंटे में एक ही समय दोनों हाथों को मिलाकर अंजुली बनाते हैं,

उसी में भोजन करते हैं। यदि अंजुली में भोजन के साथ चींटी, बाल, कोई अपवित्र पदार्थ या अन्य कोई जीव आ जाए तो उसी समय भोजन लेना बंद कर देते हैं अपने हाथ छोड़ देते हैं और उपवास हो जाता है, समाज के सचिव सुनील जैन ने बताया कि भोजन करवाने वाले श्रावक के वस्त्र नियत और शुद्ध होते हैं,आहार दाता के आहार देने से पूर्व उनसे मुनि कुछ न कुछ त्याग दिलवाते हैं। किसी को रात्रि भोजन का त्याग करवाते हैं तो किसी को नित्य देव दर्शन का संकल्प दिलवाते हैं। किसी को जमीकंद त्याग का संकल्प दिलवाते हैं। उसी के बाद श्रावक के हाथों से आहार ग्रहण करते हैं। एक समय भोजन के नियम के साथ जैन साधु संत जिन प्रतिमा के दर्शन कर विधि (नियम) लेकर विशेष मुद्रा बनाकर निकलते है। श्रावक द्वारा मुनि को आहार के लिये निवेदन में नौ प्रकार की क्रियायें तय की गयी हैं,जिसे पडगाहन कहा जाता है !पडग़ाहन में श्रद्धालुओं द्वारा आव्हान के लिये शब्दों का उच्चारण किया जाता है। उस दौरान श्रद्धालु अर्थात आहारदाता श्रावक के पास नारियल, कलश, लौंग होने का नियम लिया जाता है। नियम के अनुसार ये वस्तु नहीं दिखने पर संत बिना आहार लिए आ जाते हैं। उसके बाद दूसरे दिन फिर उसी नियम के साथ आहार के लिए वापस निकलते है। यदि नियम नहीं मिलता है, आहार के लिए उस घर में प्रवेश नहीं करते हैं। फिर अगले दिन का इंतजार किया जाता है। जैन साधु संत का आहार किसके यहां पर होगा, यह पहले से तय नहीं होता है। ओन्ली सेवा समिति के प्रचार मंत्री सुनील जैन प्रेमांशु जैन ने बताया कि साधु को देखकर चौके वाले अपने घर से निकल आते हैं, सभी श्रावक आहार जल शुद्ध है का उच्चारण पंक्तिबद्ध करते हैं। यदि विधि मिल जाती है श्रावक की ओर से तीन प्रदक्षिणा दी जाती है।कठिन विधी होने से कई दिनो का निर्जल उपवास जैन संत सरलता से कर लेते हैं अनासक्त आहार का उद्देश्य शरीर से ममत्व भाव को कम करना होता है। धर्म साधना करते समय आलस्य ना आ जाए। भोजन को शुद्धता के साथ बनाया जाता बहुत जरूरी होता है। जैन संत स्वाद के लिए भोजन नही करते है। ये धर्म साधना के लिए आहार करते हैं, इन दोनों खंडवा में मुनि श्री विनत सागर एवं विश्वमीत सागर जी महाराज का चतुर्मास चल रहा है और देव दर्शन, पूजा, प्रवचन के साथ एक समय आहारचर्या भी की जा रही है, शनिवार को आहार चर्या सरोज सचिन पूजा गदीया एवं शानू जैन परिवार के यहां संपन्न हुई। निर्विघ्न आहार हो जाने के पश्चात मुनिश्री की आरती की जाती है एवं परिजनों द्वारा बैंड-बाजे के साथ धर्मशाला पहुंचाया जाता है।